BIODATA OF RAJPUROHIT SAMAJ CHHATTISGARH
"सभी राजपुरोहित बंधुओं को जय श्री रघुनाथजी री सा, जय श्री खेतेश्वर दाता री सा"हमारा पता है -kuldip.1967@gmail.com
Tuesday, November 26, 2019
Saturday, September 21, 2013
"राजपुरोहित" रा - राज कार्य ज - जरुरी या आवश्यक पु - पुरुषार्थ रो - रोष या जोश ही - हितेषी (हित करने वाला) त - तलवार धावक
(7) सेवड़ पिरोयत:- सेवड जाति की कुलदेवी - बिसहस्त माता
(7) सेवड़ पिरोयत:- सेवड जाति की कुलदेवी - बिसहस्त माता
पिरोयतो की कौम एक नहीं अनेक प्रकार के ब्राह्मणों से बनी है।इस कौम का भाट गौडवाड़ परगने के गांव चांवडेरी में रहता है।उसकी बही से और खुद पिरोयतो के लिखाने से नीचे लिखे माफिक अलग-अलग असलियत उनकी खांपो की मालूम हुई है।
- 1. आँबेटा, 2 करलया, 3. हराऊ, 4. पीपलया, 5. मंडार, 6. सीदप,
7. पीडिया, 8. ओझा, 9. बरालेचा, 10. सीलोरा, 11 बाड़मेरा, 12 नागदा ।
(2) ओदिचा पिरोयत:- नेतड जाति की कुलदेवी - बांकलमाता
1. फॉदर्र, 2. लाखा, 3. ढमढमिया, 4. डीगारी, 5. डाबीआल, 6. हलया
ये देवड़ों के पिरोयत हैं, और अपने को उदालिक ऋषि की औलाद में से बताते है। इनकी खापें:-
7. केसरियो 8. बोरा 9. बाबरिया 10. माकवाणा 11. त्रवाडी 12 रावल
13 कोपाऊ 14 नेतरड़ 15. लछीवाल 16. पाणेचा 17. दूधवा
ये अपना वंश बाल ऋषि से मिलाते है और सिंघल राठौड़ो के पिरोयत है जिनके साथ शिव और कोटड़े से जेतारण आये जहां अब तक खेड़ी इनका शासन गांव है।
जब राव मालदेव जी ने सिंधलो को जेतारण में से निकाल दिया था तो उनको राणाजी ने अपने पास रख कंवला वगैरा 18 गांव गोड़वाड़ में दिये थे जिनमें से उन्होने 5-6 गांव न पिरोयतो को भी दिये जिनकी जमा 10 हजार से 15 हजार थी।
इनके शासन गांव-
1. पूनाड़िया 2. ढोला का गांव 3. आकदड़ा 4. ढारिया
5. चांचोड़ी 6. सूकरलाई
जागरवाल की कोई अलग से खांप नहीं है।
(1) राजगुर पिरोयत:- राजगुरू जाति की कुलदेवी - सरस्वती माता (अरबुदा देवी)
यह कि पंवारो के पुरोहित है और अपनी पैदाईश पंवारो के माफिक वशिष्ट ऋर्षि के अग्नि कुंड से मानते है । जो आबू पहाड़ के ऊपर नक्की तालाब के पास है। इनका बयान है कि पंवार से पहले हमारा बड़ेरा राम-राम करता पैदा हुआ, जिससे उनसे कहा कि ‘‘तुं परमार हूं गुर राजरो’’ यानि आप बैरियों को मारने वाले है, और मैं आपका गुरू हूं । परमार ने उसको अपना पुरोहित बना कर राजगुर पदवी और अजाड़ी गांव शासन दिया जो सिरोही रियासत में शामिल था । सबसे पुराना राजगुर पिरोयतो का है। मारवाड में भी सीलोर और डोली वगैरा कई गांव शासन सिवाने और जोधपुर में है, और इनकी खांपे- 1. आँबेटा, 2 करलया, 3. हराऊ, 4. पीपलया, 5. मंडार, 6. सीदप,
7. पीडिया, 8. ओझा, 9. बरालेचा, 10. सीलोरा, 11 बाड़मेरा, 12 नागदा ।
इनमें से सीदप पहले चौहानों के भी पिरोयत हो गये थे मगर फिर किसी कारण से नाराज होकर छोड़ बैठे ।अब उनकी जगह दूसरी खांप के राजगुरू उनके पिरोयत है।
सीदप के शासन गांव, टीबाणिया, फूलार, जुड़िया, अणरबोल, पंचपद्रा, शिव और सांचोर के परगनों में है।(2) ओदिचा पिरोयत:- नेतड जाति की कुलदेवी - बांकलमाता
1. फॉदर्र, 2. लाखा, 3. ढमढमिया, 4. डीगारी, 5. डाबीआल, 6. हलया
ये देवड़ों के पिरोयत हैं, और अपने को उदालिक ऋषि की औलाद में से बताते है। इनकी खापें:-
7. केसरियो 8. बोरा 9. बाबरिया 10. माकवाणा 11. त्रवाडी 12 रावल
13 कोपाऊ 14 नेतरड़ 15. लछीवाल 16. पाणेचा 17. दूधवा
इनके भी कई शासक गांव मारवाड़ में है जिनमें बड़ा गांव बसंत गोडवाड़ परगने में राणाजी का दिया हुआ है जिनकी आमदनी उस समय पांच सात हजार रूपये थी ।
(3) जागरवाल पिरोयत:-जागरवाल जाति की कुलदेवी - ज्वाला देवी ये अपना वंश बाल ऋषि से मिलाते है और सिंघल राठौड़ो के पिरोयत है जिनके साथ शिव और कोटड़े से जेतारण आये जहां अब तक खेड़ी इनका शासन गांव है।
जब राव मालदेव जी ने सिंधलो को जेतारण में से निकाल दिया था तो उनको राणाजी ने अपने पास रख कंवला वगैरा 18 गांव गोड़वाड़ में दिये थे जिनमें से उन्होने 5-6 गांव न पिरोयतो को भी दिये जिनकी जमा 10 हजार से 15 हजार थी।
इनके शासन गांव-
1. पूनाड़िया 2. ढोला का गांव 3. आकदड़ा 4. ढारिया
5. चांचोड़ी 6. सूकरलाई
जागरवाल की कोई अलग से खांप नहीं है।
(4) पांचलोड पिरोयत:- पांचलोड जाति की कुलदेवी - चामुण्डा माता
ये भी राजगुरो के अनुसार आबू पहाड़ से अपनी उत्पत्ति मानते है और अपने को परासर ऋर्षि की औलाद में बताते है। इनकी भी कोई खांप नहीं है और इनका शासन गांव बागलोप परगने सिवाने में है।
(5) सीहा पिरोयत:- ये कहते है कि हम गौतम ऋषि की औलाद (संतान) है और पुष्करजी से मारवाड़ में आये हैं। इनकी खांपे -
1. सीहा 2. केवाणचा 3. हातला 4. राड़बड़ा 5. बोतिया
ये पल्लीवाल ब्राह्मणों में से निकले है जब पाली मुसलमानों के हाथो से बिगड़ी तो इनके बडेरे पिरोयतो के साथ सगपन करके उनके साथ शामिल हुए । इनकी खांपे -
1. गूंदेचा 2. मूंथा 3. चरख 4. गोटा 5. साथवा 6. नंदबाणा
7. नाणावाल 8. आगसेरिया 9. गोमतवाल 10. पोकरना 11. थाणक 12. बलवचा
13. बालचा 14. मोड 15. भगोरा 16. करमाणा 17 धमाणिया
ये सिसोदियों के पिरोयत है क्योंकि परगने गोडवाड़ में अकसर गांव उदयपुर के महाराणा साहिब के बुजरगो के दिये हुए इनके पास हैं जिनमें गूंदेचा, मूंथो और बलवचों के पास तो एकजाई गांव बड़े-बड़े उपजाऊ के है। जिनमें गूंदेचा के पास मादा, बाड़वा और निम्बाड़ा, मूथों के पास पिलोवणी, घेनड़ी, भणदार, रूंगडी और शिवतलाब तथा बलवचो के पास पराखिया व पूराड़ा है।
1. रूद्राजी - इनके तीन बैटे खींदाजी, खींडाजी और कानाजी थे । खींदाजी के खेताजी, खेताजी के रायमल, रायमल के पीथा जी जिसकी औलाद में शासन गांव बड़ली परगने जोधपुर है। रायमल का बेटा उदयसिंघ था । उसके दो बेटे कूंभाजी और भारमल हुए । कूम्भाजी की औलाद का शासन गांव खाराबेरा परगने जोधपुर में और भारमल की औलाद का शासन गांवधोलेरया परगने जालौर में है।
2. दूसरा बेटा हरपाल का देदाजी, जिसकी औलाद के शासन गांव बावड़ी छोटी और बड़ी परगने फलौदी, ओसियां का बड़ा बास और बाड़ा परगने
जोधपुर है।यह जोधा तथा सूंडा राठोडो इके पिरोयत है । इनका कथन है कि इनके पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे । इनके कथन के अनुसार इनके बडेरे देपाल कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे। सियाजी ने इनको अपना पुरोहित बनाया और वे मारवाड के पिरोयतो में सगपन करके इस कौम में
मिल गये ।मारवाड़ में ज्यों ज्यों राठौड़ो का राज बढ़ता गया सेवड़ पिरोयतो को भी उसी तरह ज्यादा से ज्यादा शासन गांव मिलते रहे और उनकी औलाद भी राठौड़ो के अनुसार बहुत फैली । आज क्या जमीन, क्या आमदनी और क्या जनसंख्या में सेवड़ पिरोयत कुल पिरोयतो से बढ़े हुये
है।देपाल जी से कई पुश्त पीछे बसंतजी हुए । उनके दो बेटे बीजड़जी और बाहड़जी थे बीजड़जी मलीनाथ जी के पास रहते थे । कंरव जगमाल जी ने उनको बीच में देकर अपने काका जेतमाल जी को सिवाने से बुलाया और दगा से मार डाला । बीजड़जी इस बात से खेड़ छोड़कर बीरमजी के पास चले गये । राव चूंडाजी ने जब सम्वत् 1452 में मंडोर का राज लिया तो उनकी या उनके बेटे हरपाल को गेवां बागां और बड़ली वगैरा कई गांव मंडोर के पास-पास शान दिये। बाहड़जी के कूकड़जी के राजड़जी हुए जिनकी औलाद के शासन गांव साकड़िया और कोलू परगने शिव में है। हरपाल के पांच बेटे थे:-
खींडाजी की औलाद का शासन गांव टूकलिया परगने मेड़ता में है। कानाजी की औलाद में शासन गांव पाचलोडिया, चांवडया, प्रोतासणी और सिणया मेड़ता परगने के हैं।
3. तीसरा दामाजी । ये राव रिड़मलजी के साथ चितौड़ में रहते थे । जिस रात कि सीसोदियो ने रावजी को मारा और राव जोधाजी वहां से भागे तो उनका चाचा भीभी चूंडावत ऐसी गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसको जगा-जगा कर थक गये मगर उसने तो करवट भी नहीं बदली । लाचार उसको वहीं सोता हुआ छोड़ गये । दामाजी भी उनके पास रहा । दूसरे दिन सीसोदियो ने भीम को पकड़ कर कतल करना चाहा तो दामाजी ने कई लाख रूपये देने का इकरार करके उसको छुड़ा दिया और आप उसकी जगह कैद में बैठ गये । कुछ दिनों पीछे जब सीसोदियो ने रूपये मांगे तो कह दिया कि मैं तो गरीब ब्राह्मण हूं । मेरे पास इतने रूपये कहा । यह सुनकर सीसोदियो ने दामाजी को छोड़ दिया। जोधाजी ने इस बंदगी में चैत बद 15 सम्वत् 1518 के दिन गयाजी में उनको बहुत बड़ा शासन दिया जिसकी आमदनी दस हजार रूपये से कम नहीं थी । दामाजी के जानशीन तिंवरी के पुरोहितजी कहलाते हैं। गांव तिंवरी जोधपुर परगने के बड़े-बड़े गांवो में से एक नामी गांव नौ कोस की तरफ है।
दामाजी पिरोयतो में बहुत नामी हुए हैं और उनकी औलाद भी बहुत फैली कि एक लाख दमाणी कहे जाते हैं । यानि एक लाख मर्द औरत बीकानेर, मारवाड़, ईडर, किशनगढ़ और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतों में सन् 1891 तक थे । इनके फैलाव की हद उत्तर की तरफ गांव नेरी इलाके बीकानेर जाकर खत्म होती है और यही पिरोयतो के सगपन की भी हद थी जिसके वास्ते मारवाड़ में यह औखाणा मशहूर है ‘‘गई नैरी सो पाछी नहीं आई बैरी’’ यानि जो औरत नैरी में ब्याही गई फिर वह पाछी नहीं आई क्योंकि जोधपुर से सौ डेढ़ सौ कोस का फासिला है और इसी वजह से पिरोयतो की औरतों में ढ़ीट लड़कियों को नैरी में ब्याहने की एक धमकी है। वे कही है कि तू जो कहना नहीं करती है तो तुझको नैरी में निकालूंगी कि फिर पीछी नहीं आ सके। 1.नाडाजी (ना औलाद) जिसने जोधपुर के पास नाडेलाव तालाब बनाया ।
दामाजी के छः बेटे थे!
2. बीसाजी । इन्होंने बीसोलाव तालाब खुदाया था । इसका बेटा कूंपाजी और कूंपाजी के तीन बेटे, केसूजी, भोजाजी, और मूलराज जी । केसोजी की औलाद में शासन गांव घटयाला परगने शेरगढ़ है। भोजाजी की औलाद में शासन गांव तालकिया परगना जेतारण है। मूलराज जी ने मूलनायक जी का मन्दिर जोधपुर में और एक बड़ा कोट गांव भैसेर में बनवाया जिससे वह भैसेर कोटवाली कहलाता है। इनके बेटे पदम जी के कल्याणसिंघ जी जिन्होने तिंवरी में रहना माना । इनके बड़े बेटे रामसिंघ, उनके मनोहरदास, उनके दलपतजी थे । ये बैशाख बद 9 सम्वत् 1714 को उज्जैन की लड़ाई में काम आये जो शहजादे औरंगजेब और महाराजा श्री जसवंत सिंह जी में हुई थी । दलपतजी के अखेराज महाराज श्री अजीतसिंह जी के त्रिके में हाजिर रहे ।
अखेराज के सूरजमल, उनके रूपसिंघ, उनके कल्याणसिंघ, उनके महासिंघ (खोले आये) महासिंघ के दोलतसिंघ, दोलतसिंघ के गुमानसिंह जो आसोज सुदी 8 सं. 1872 को आयस देवनाथ जी के साथ किले जोधपुर में नवाब मीरखांजी के आदमियों के हाथ से काम आये, उनके नत्थूसिंघ, उनके अनाड़सिंघ उनके भैरूसिंघ उनके हणवतसिंघ जो अब तिंवरी के पिरोयत है। इनका जन्म सं. 1923 का है। दूसरे बेटे अखेराज के केसरीसिंघ जो अहमदाबाद की लड़ाई में काम आये। इनके दो बेटे प्रताप सिंह, अनोपसिंघ थे । प्रतापसिंघ की औलाद का शासन गांव खेड़ापा परगने जोधपुर है जहां रामस्नेही का गुरूद्वारा है। अनोपसिंह की औलाद का शासन गांव दून्याड़ी परगने नागौर है। तीसरे बेटे अखेराज के जयसिंघ की औलाद का शासन गांव जाटियावास परगने बीलाड़ा है। चौथे बेटे महासिंघ के चार बेटे सूरतसिंह, संगरामसिंह, लालसिंह, चैनसिह की औलाद का शासन गांव खीचोंद परगना फलोदी है। पांचवे बेटे विजयराज के बड़े बेटे सरदार सिंघ की आलौद का शासन भेंसेर कोतवाली दूसरे बेटे राजसिंह की औलाद का भेंसेर कूतरी परगने जोधपुर, तीसरे और चौथे बेटे जीवराज और बिशन सिंह की औलाद का आधा-आधा गांव भावड़ा परगने नागौर शासन है। छटा बेटा महासिंघ का तेजसिंह सूरजमल के खोले गया, सातवें बेटे फतहसिंघ का छटा बंट गांव भावड़ा में है।
कल्याणसिंह के दूसरे बेटे गोयंददास जी औलाद का शासन गांव ढडोरा परगने जोधपुर और तीसरे बेटे रायभान की औलाद का शासन गांव भटनोका परगने नागौर है।
मूलराज के दूसरे बेटे महेसदास की औलाद का शासन गावं चाड़वास परगने सोजनत में है तीसरे बेटे छताजी की औलाद का शासन गांव धूड़यासणी परगने सोजत में हैं चौथे रायसल का मालपुरया पगरने जेतारण परगने में हैं छोटे भानीदास का गांव भेाजासर बीकानेर में है।
3. तीसरा बेटा दामाजी का ऊदाजी जिसकी औलाद के शासन गांव बिगवी और थोब परगने जोधपुर में है।
4. चौथा बेटा दामाजी का बिज्जाजी जिसकी औलाद में शासन गांव घेवड़ा परगने जोधपुर, रूपावास परगने सोजत और मोराई परगने जैतारण है।
5. दामाजी का पांचवा पुत्र पिरोयत विक्रमसी यह जोधपुर के राव जोधाजी के कंवर बीकाजी के साथ 01 अक्टूबर 1468 को जोधपुर से (बीकानेर) नये राज्य को जीतने के लिए रवाना हुए इनका वंश अपनी वीरता एवं शोर्य के लिए रियासत बीकानेर के स्तम्भ रहे और इनको पट्टे में मिले गांव इस रियासत में है। विक्रमसी का पुत्र देवीदास 29 जून 1526 को जैसलमेर में सिंध के नवाब से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए इनको इस वीरता एवं जैसलमेर पर अधिकार करने के फलस्वरूप गांव तोलियासर एवं 12 अन्य गांव पट्टे में मिले एवं पुरोहिताई पदवी मिली । देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च 1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा। किसनदास के पुत्र हरिदास ने हियादेसर बसाया । सूरसिंह के गद्दी पर बैठने के बाद तोलियासर के पुरोहित मान महेश की जागीर जब्त करली इसके विरोध में मान महेश ने गढ़ के समाने अग्नि में आत्मदाह कर लिया जहां अब सूरसागर है इसके बाद से तोलियासर के पुरोहितो से पुरोहिताई पदवी निकल गई लगभग 1613 में यह पदवी कल्याणपुर के पुरोहितो को मिली । हरिदास के लिखमीदास व इनके गोपालदास व इनके पसूराम जी हुए इनके पुत्र कानजी को आठ गांव संवाई बड़ी, कल्याणपुर, आडसर, धीरदेसर, कोटड़ी, रासीसर, दैसलसर और साजनसर पट्टे में मिले इनके सात पुत्रों का वंश अब भी इन गांवो में है। बीकानेर राज्य के इतिहास में सन् 1739 में जगराम जी, सन् 1753 में रणछोड़ दास जी, सन् 1756 में जगरूप जी, सन् 1768 में ज्ञान जी सन् 1807 में जवान जी, सन् 1816 में जेठमल जी, सन् 1818 में गंगाराम जी व सन् 1855 में प्रेमजी व चिमनराम का जीवन वीरता एवं शौर्य के लिए प्रसिद्ध रहा है। कल्याणपुर के टिकाई पुरोहित शिवनाथ सिंह जी के इन्तकाल के बाद पुत्र भैरूसिंह जी की रियासत से नाराजगी के बाद से यह पदवी कोटड़ी गांव के पुरोहित हमीरसिंह जी को मिली । इसके बाद इनके बड़े पुत्र मोतीसिंह जी व उसके बाद स्व. मोतीसिंह जी के बड़े पुत्र श्री भंवरसिंह टिकाई है।
6. दादोजी का छटा पुत्र देवनदास जिसके बड़े बेटे फल्लाजी का शासन गांव नहरवा दूसरे बेटे रामदेव का पापासणी परगने जोधपुर में है फल्ला ने फल्लूसर तलाब बनाया जिसको फज्जूसर भी कहते है।
मारवाड़ एवं थली के अलावा किशनगढ़, ईडर, अहमदनगर और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतो में भी सेवड़ पिरोयतो के शासन गांव है।
सेवड़ो की तीन खांपे हैं
1- अखराजोत 2. मालावत 3. कानोत अखराजोत वंश के पास जोधपुर जिले के तिंवरी ग्राम में आठ कोटड़ियां है। मालावतो के पास पाली, सोजत और जेतारण में गांव है कानोतो के गांव थली में है।
(8) सोढ़ा पिरोयत:- सोढा जाति की कुलदेवी - चक्रेश्वरी देवी
ये अपने मूल पुरूष सोढ़ल के नाम से सोढ़ा कहलाते हैं। इनके बडेरे भी देपाल की तरह दलहर कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे दलहर के बेटे पेथड़ को राव धूड़जी ने गांव त्रिसींगड़ी जो अब परगने पचभद्दरे में है शासन दिया था इसके वंश वाले रासल मलीनाथ जी और जैतमाल जी की औलाद महेचा और धवेचा राठोड़ो के पुरोहित हैं और इनके शासन गांव जियादातर इन्हीं खांपो के दिये हुए मालाणी सिवाणों और शिव वगैरा परगने में है। (9) दूधा पिरोयत:- ये श्रीमाली ब्राह्मणों में से निकले हैं इनका बडेरा केसर जी श्रीमाली का बेटा दूधाजी चितौड़ के राणा मोकलजी ने उन्हे गैर इलाको से घोड़े खरीद कर लाने के लिए बाहर भेज दिया था । घोड़े खरीदने पर अपनी नियुक्ति स्वीकार करने के अपराध में मारवाड़ ब्राह्मणों ने उन्हे जाति च्युत कर दिया और ये सब रिश्तेदारो सहित पिरोयतो में मिल गये । इस खां में कोई बड़ा शासन गांव नहीं है इनकी मुख्य खांपे 17 हैं। (10) रायगुर पिरोयत :- रायगुर जाति की कुलदेवी - आशापुरा माताये सोनगरे चौहानो के पुरोहित हैं। इनका बयान है कि जालोर के रावे कानड़देव के राज में अजमाल सोनग्रा राजगुर पिरोयत हरराज के खोले चला गया उसकी औलाद रायुगर कहलायी । इनके शासन गांव ढाबर, पुनायता परगने पाली, साकरणा परगने जालोर और पातावा परगने वाली है। 11) मनणा पिरोयत:- मनणा जाति की कुलदेवी - चामुण्डा (जोगमाया) (12) महीवाल:- ये पंवार राजपूतो से पिरोयत बने है। (13) भंवरिया:-ये आदगोड ब्राह्मणों से निकले है पूर्वकाल में यह रावलोत भाटी राजपूतो के पुरोहित थे जब देराबर का राज भाटियों से छूटा तो इनकी पिरोताई भी जाती रही । इनका शासन गांव कालोट परगना मालानी में है।
इनके पूर्वज गोयल राजपूत का गुरू था किसी कारण वंश पिरोयतों में मिल गये । इनके शासन गांव मनणों की बासणी सरबड़ी का बास और कालोड़ी वगैरा है।
जोशी जाति की कुलदेवी - क्षेमंकारी माता पांचलोड जाति की कुलदेवी - चामुण्डा माता
रिदुआ जाति की कुलदेवी -सुन्धा माता सेपाउ जाति की कुलदेवी-हिगंलाज माताउदेश जाति की कुलदेवी-मम्माई माता व्यास जाति की कुलदेवी-महालक्ष्मी माता
(5) सीहा पिरोयत:- ये कहते है कि हम गौतम ऋषि की औलाद (संतान) है और पुष्करजी से मारवाड़ में आये हैं। इनकी खांपे -
1. सीहा 2. केवाणचा 3. हातला 4. राड़बड़ा 5. बोतिया
इनमें से केवाणचों के खडोकड़ा और आकरड़ा दो बड़े शासन गांव गोडवाड़ में राणाजी के दिये हुए है।
(6) पल्लीवाल पिरोयत:- गुन्देशा व मुथा जाति की कुलदेवी - रोहिणी माता ये पल्लीवाल ब्राह्मणों में से निकले है जब पाली मुसलमानों के हाथो से बिगड़ी तो इनके बडेरे पिरोयतो के साथ सगपन करके उनके साथ शामिल हुए । इनकी खांपे -
1. गूंदेचा 2. मूंथा 3. चरख 4. गोटा 5. साथवा 6. नंदबाणा
7. नाणावाल 8. आगसेरिया 9. गोमतवाल 10. पोकरना 11. थाणक 12. बलवचा
13. बालचा 14. मोड 15. भगोरा 16. करमाणा 17 धमाणिया
ये सिसोदियों के पिरोयत है क्योंकि परगने गोडवाड़ में अकसर गांव उदयपुर के महाराणा साहिब के बुजरगो के दिये हुए इनके पास हैं जिनमें गूंदेचा, मूंथो और बलवचों के पास तो एकजाई गांव बड़े-बड़े उपजाऊ के है। जिनमें गूंदेचा के पास मादा, बाड़वा और निम्बाड़ा, मूथों के पास पिलोवणी, घेनड़ी, भणदार, रूंगडी और शिवतलाब तथा बलवचो के पास पराखिया व पूराड़ा है।
1. रूद्राजी - इनके तीन बैटे खींदाजी, खींडाजी और कानाजी थे । खींदाजी के खेताजी, खेताजी के रायमल, रायमल के पीथा जी जिसकी औलाद में शासन गांव बड़ली परगने जोधपुर है। रायमल का बेटा उदयसिंघ था । उसके दो बेटे कूंभाजी और भारमल हुए । कूम्भाजी की औलाद का शासन गांव खाराबेरा परगने जोधपुर में और भारमल की औलाद का शासन गांवधोलेरया परगने जालौर में है।
2. दूसरा बेटा हरपाल का देदाजी, जिसकी औलाद के शासन गांव बावड़ी छोटी और बड़ी परगने फलौदी, ओसियां का बड़ा बास और बाड़ा परगने
जोधपुर है।यह जोधा तथा सूंडा राठोडो इके पिरोयत है । इनका कथन है कि इनके पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे । इनके कथन के अनुसार इनके बडेरे देपाल कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे। सियाजी ने इनको अपना पुरोहित बनाया और वे मारवाड के पिरोयतो में सगपन करके इस कौम में
मिल गये ।मारवाड़ में ज्यों ज्यों राठौड़ो का राज बढ़ता गया सेवड़ पिरोयतो को भी उसी तरह ज्यादा से ज्यादा शासन गांव मिलते रहे और उनकी औलाद भी राठौड़ो के अनुसार बहुत फैली । आज क्या जमीन, क्या आमदनी और क्या जनसंख्या में सेवड़ पिरोयत कुल पिरोयतो से बढ़े हुये
है।देपाल जी से कई पुश्त पीछे बसंतजी हुए । उनके दो बेटे बीजड़जी और बाहड़जी थे बीजड़जी मलीनाथ जी के पास रहते थे । कंरव जगमाल जी ने उनको बीच में देकर अपने काका जेतमाल जी को सिवाने से बुलाया और दगा से मार डाला । बीजड़जी इस बात से खेड़ छोड़कर बीरमजी के पास चले गये । राव चूंडाजी ने जब सम्वत् 1452 में मंडोर का राज लिया तो उनकी या उनके बेटे हरपाल को गेवां बागां और बड़ली वगैरा कई गांव मंडोर के पास-पास शान दिये। बाहड़जी के कूकड़जी के राजड़जी हुए जिनकी औलाद के शासन गांव साकड़िया और कोलू परगने शिव में है। हरपाल के पांच बेटे थे:-
खींडाजी की औलाद का शासन गांव टूकलिया परगने मेड़ता में है। कानाजी की औलाद में शासन गांव पाचलोडिया, चांवडया, प्रोतासणी और सिणया मेड़ता परगने के हैं।
3. तीसरा दामाजी । ये राव रिड़मलजी के साथ चितौड़ में रहते थे । जिस रात कि सीसोदियो ने रावजी को मारा और राव जोधाजी वहां से भागे तो उनका चाचा भीभी चूंडावत ऐसी गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसको जगा-जगा कर थक गये मगर उसने तो करवट भी नहीं बदली । लाचार उसको वहीं सोता हुआ छोड़ गये । दामाजी भी उनके पास रहा । दूसरे दिन सीसोदियो ने भीम को पकड़ कर कतल करना चाहा तो दामाजी ने कई लाख रूपये देने का इकरार करके उसको छुड़ा दिया और आप उसकी जगह कैद में बैठ गये । कुछ दिनों पीछे जब सीसोदियो ने रूपये मांगे तो कह दिया कि मैं तो गरीब ब्राह्मण हूं । मेरे पास इतने रूपये कहा । यह सुनकर सीसोदियो ने दामाजी को छोड़ दिया। जोधाजी ने इस बंदगी में चैत बद 15 सम्वत् 1518 के दिन गयाजी में उनको बहुत बड़ा शासन दिया जिसकी आमदनी दस हजार रूपये से कम नहीं थी । दामाजी के जानशीन तिंवरी के पुरोहितजी कहलाते हैं। गांव तिंवरी जोधपुर परगने के बड़े-बड़े गांवो में से एक नामी गांव नौ कोस की तरफ है।
दामाजी पिरोयतो में बहुत नामी हुए हैं और उनकी औलाद भी बहुत फैली कि एक लाख दमाणी कहे जाते हैं । यानि एक लाख मर्द औरत बीकानेर, मारवाड़, ईडर, किशनगढ़ और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतों में सन् 1891 तक थे । इनके फैलाव की हद उत्तर की तरफ गांव नेरी इलाके बीकानेर जाकर खत्म होती है और यही पिरोयतो के सगपन की भी हद थी जिसके वास्ते मारवाड़ में यह औखाणा मशहूर है ‘‘गई नैरी सो पाछी नहीं आई बैरी’’ यानि जो औरत नैरी में ब्याही गई फिर वह पाछी नहीं आई क्योंकि जोधपुर से सौ डेढ़ सौ कोस का फासिला है और इसी वजह से पिरोयतो की औरतों में ढ़ीट लड़कियों को नैरी में ब्याहने की एक धमकी है। वे कही है कि तू जो कहना नहीं करती है तो तुझको नैरी में निकालूंगी कि फिर पीछी नहीं आ सके। 1.नाडाजी (ना औलाद) जिसने जोधपुर के पास नाडेलाव तालाब बनाया ।
दामाजी के छः बेटे थे!
2. बीसाजी । इन्होंने बीसोलाव तालाब खुदाया था । इसका बेटा कूंपाजी और कूंपाजी के तीन बेटे, केसूजी, भोजाजी, और मूलराज जी । केसोजी की औलाद में शासन गांव घटयाला परगने शेरगढ़ है। भोजाजी की औलाद में शासन गांव तालकिया परगना जेतारण है। मूलराज जी ने मूलनायक जी का मन्दिर जोधपुर में और एक बड़ा कोट गांव भैसेर में बनवाया जिससे वह भैसेर कोटवाली कहलाता है। इनके बेटे पदम जी के कल्याणसिंघ जी जिन्होने तिंवरी में रहना माना । इनके बड़े बेटे रामसिंघ, उनके मनोहरदास, उनके दलपतजी थे । ये बैशाख बद 9 सम्वत् 1714 को उज्जैन की लड़ाई में काम आये जो शहजादे औरंगजेब और महाराजा श्री जसवंत सिंह जी में हुई थी । दलपतजी के अखेराज महाराज श्री अजीतसिंह जी के त्रिके में हाजिर रहे ।
अखेराज के सूरजमल, उनके रूपसिंघ, उनके कल्याणसिंघ, उनके महासिंघ (खोले आये) महासिंघ के दोलतसिंघ, दोलतसिंघ के गुमानसिंह जो आसोज सुदी 8 सं. 1872 को आयस देवनाथ जी के साथ किले जोधपुर में नवाब मीरखांजी के आदमियों के हाथ से काम आये, उनके नत्थूसिंघ, उनके अनाड़सिंघ उनके भैरूसिंघ उनके हणवतसिंघ जो अब तिंवरी के पिरोयत है। इनका जन्म सं. 1923 का है। दूसरे बेटे अखेराज के केसरीसिंघ जो अहमदाबाद की लड़ाई में काम आये। इनके दो बेटे प्रताप सिंह, अनोपसिंघ थे । प्रतापसिंघ की औलाद का शासन गांव खेड़ापा परगने जोधपुर है जहां रामस्नेही का गुरूद्वारा है। अनोपसिंह की औलाद का शासन गांव दून्याड़ी परगने नागौर है। तीसरे बेटे अखेराज के जयसिंघ की औलाद का शासन गांव जाटियावास परगने बीलाड़ा है। चौथे बेटे महासिंघ के चार बेटे सूरतसिंह, संगरामसिंह, लालसिंह, चैनसिह की औलाद का शासन गांव खीचोंद परगना फलोदी है। पांचवे बेटे विजयराज के बड़े बेटे सरदार सिंघ की आलौद का शासन भेंसेर कोतवाली दूसरे बेटे राजसिंह की औलाद का भेंसेर कूतरी परगने जोधपुर, तीसरे और चौथे बेटे जीवराज और बिशन सिंह की औलाद का आधा-आधा गांव भावड़ा परगने नागौर शासन है। छटा बेटा महासिंघ का तेजसिंह सूरजमल के खोले गया, सातवें बेटे फतहसिंघ का छटा बंट गांव भावड़ा में है।
कल्याणसिंह के दूसरे बेटे गोयंददास जी औलाद का शासन गांव ढडोरा परगने जोधपुर और तीसरे बेटे रायभान की औलाद का शासन गांव भटनोका परगने नागौर है।
मूलराज के दूसरे बेटे महेसदास की औलाद का शासन गावं चाड़वास परगने सोजनत में है तीसरे बेटे छताजी की औलाद का शासन गांव धूड़यासणी परगने सोजत में हैं चौथे रायसल का मालपुरया पगरने जेतारण परगने में हैं छोटे भानीदास का गांव भेाजासर बीकानेर में है।
3. तीसरा बेटा दामाजी का ऊदाजी जिसकी औलाद के शासन गांव बिगवी और थोब परगने जोधपुर में है।
4. चौथा बेटा दामाजी का बिज्जाजी जिसकी औलाद में शासन गांव घेवड़ा परगने जोधपुर, रूपावास परगने सोजत और मोराई परगने जैतारण है।
5. दामाजी का पांचवा पुत्र पिरोयत विक्रमसी यह जोधपुर के राव जोधाजी के कंवर बीकाजी के साथ 01 अक्टूबर 1468 को जोधपुर से (बीकानेर) नये राज्य को जीतने के लिए रवाना हुए इनका वंश अपनी वीरता एवं शोर्य के लिए रियासत बीकानेर के स्तम्भ रहे और इनको पट्टे में मिले गांव इस रियासत में है। विक्रमसी का पुत्र देवीदास 29 जून 1526 को जैसलमेर में सिंध के नवाब से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए इनको इस वीरता एवं जैसलमेर पर अधिकार करने के फलस्वरूप गांव तोलियासर एवं 12 अन्य गांव पट्टे में मिले एवं पुरोहिताई पदवी मिली । देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च 1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा। किसनदास के पुत्र हरिदास ने हियादेसर बसाया । सूरसिंह के गद्दी पर बैठने के बाद तोलियासर के पुरोहित मान महेश की जागीर जब्त करली इसके विरोध में मान महेश ने गढ़ के समाने अग्नि में आत्मदाह कर लिया जहां अब सूरसागर है इसके बाद से तोलियासर के पुरोहितो से पुरोहिताई पदवी निकल गई लगभग 1613 में यह पदवी कल्याणपुर के पुरोहितो को मिली । हरिदास के लिखमीदास व इनके गोपालदास व इनके पसूराम जी हुए इनके पुत्र कानजी को आठ गांव संवाई बड़ी, कल्याणपुर, आडसर, धीरदेसर, कोटड़ी, रासीसर, दैसलसर और साजनसर पट्टे में मिले इनके सात पुत्रों का वंश अब भी इन गांवो में है। बीकानेर राज्य के इतिहास में सन् 1739 में जगराम जी, सन् 1753 में रणछोड़ दास जी, सन् 1756 में जगरूप जी, सन् 1768 में ज्ञान जी सन् 1807 में जवान जी, सन् 1816 में जेठमल जी, सन् 1818 में गंगाराम जी व सन् 1855 में प्रेमजी व चिमनराम का जीवन वीरता एवं शौर्य के लिए प्रसिद्ध रहा है। कल्याणपुर के टिकाई पुरोहित शिवनाथ सिंह जी के इन्तकाल के बाद पुत्र भैरूसिंह जी की रियासत से नाराजगी के बाद से यह पदवी कोटड़ी गांव के पुरोहित हमीरसिंह जी को मिली । इसके बाद इनके बड़े पुत्र मोतीसिंह जी व उसके बाद स्व. मोतीसिंह जी के बड़े पुत्र श्री भंवरसिंह टिकाई है।
6. दादोजी का छटा पुत्र देवनदास जिसके बड़े बेटे फल्लाजी का शासन गांव नहरवा दूसरे बेटे रामदेव का पापासणी परगने जोधपुर में है फल्ला ने फल्लूसर तलाब बनाया जिसको फज्जूसर भी कहते है।
मारवाड़ एवं थली के अलावा किशनगढ़, ईडर, अहमदनगर और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतो में भी सेवड़ पिरोयतो के शासन गांव है।
सेवड़ो की तीन खांपे हैं
1- अखराजोत 2. मालावत 3. कानोत अखराजोत वंश के पास जोधपुर जिले के तिंवरी ग्राम में आठ कोटड़ियां है। मालावतो के पास पाली, सोजत और जेतारण में गांव है कानोतो के गांव थली में है।
(8) सोढ़ा पिरोयत:- सोढा जाति की कुलदेवी - चक्रेश्वरी देवी
ये अपने मूल पुरूष सोढ़ल के नाम से सोढ़ा कहलाते हैं। इनके बडेरे भी देपाल की तरह दलहर कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे दलहर के बेटे पेथड़ को राव धूड़जी ने गांव त्रिसींगड़ी जो अब परगने पचभद्दरे में है शासन दिया था इसके वंश वाले रासल मलीनाथ जी और जैतमाल जी की औलाद महेचा और धवेचा राठोड़ो के पुरोहित हैं और इनके शासन गांव जियादातर इन्हीं खांपो के दिये हुए मालाणी सिवाणों और शिव वगैरा परगने में है। (9) दूधा पिरोयत:- ये श्रीमाली ब्राह्मणों में से निकले हैं इनका बडेरा केसर जी श्रीमाली का बेटा दूधाजी चितौड़ के राणा मोकलजी ने उन्हे गैर इलाको से घोड़े खरीद कर लाने के लिए बाहर भेज दिया था । घोड़े खरीदने पर अपनी नियुक्ति स्वीकार करने के अपराध में मारवाड़ ब्राह्मणों ने उन्हे जाति च्युत कर दिया और ये सब रिश्तेदारो सहित पिरोयतो में मिल गये । इस खां में कोई बड़ा शासन गांव नहीं है इनकी मुख्य खांपे 17 हैं। (10) रायगुर पिरोयत :- रायगुर जाति की कुलदेवी - आशापुरा माताये सोनगरे चौहानो के पुरोहित हैं। इनका बयान है कि जालोर के रावे कानड़देव के राज में अजमाल सोनग्रा राजगुर पिरोयत हरराज के खोले चला गया उसकी औलाद रायुगर कहलायी । इनके शासन गांव ढाबर, पुनायता परगने पाली, साकरणा परगने जालोर और पातावा परगने वाली है। 11) मनणा पिरोयत:- मनणा जाति की कुलदेवी - चामुण्डा (जोगमाया) (12) महीवाल:- ये पंवार राजपूतो से पिरोयत बने है। (13) भंवरिया:-ये आदगोड ब्राह्मणों से निकले है पूर्वकाल में यह रावलोत भाटी राजपूतो के पुरोहित थे जब देराबर का राज भाटियों से छूटा तो इनकी पिरोताई भी जाती रही । इनका शासन गांव कालोट परगना मालानी में है।
इनके पूर्वज गोयल राजपूत का गुरू था किसी कारण वंश पिरोयतों में मिल गये । इनके शासन गांव मनणों की बासणी सरबड़ी का बास और कालोड़ी वगैरा है।
जोशी जाति की कुलदेवी - क्षेमंकारी माता पांचलोड जाति की कुलदेवी - चामुण्डा माता
रिदुआ जाति की कुलदेवी -सुन्धा माता सेपाउ जाति की कुलदेवी-हिगंलाज माताउदेश जाति की कुलदेवी-मम्माई माता व्यास जाति की कुलदेवी-महालक्ष्मी माता
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